प्रकृति की गोद में विराजे निष्कलंकेश्वर महादेव
पंचमुखी रूप में विराजे महादेव, पौराणिक कथाएं भी प्रचलित
चमत्कारिक है देवास महाकालेश्वर मंदिर
सिद्ध स्थान है बाबा भंवरनाथ मंदिर
शिवालयों पर लगेगा शिवभक्तों का तांता
चेतन राठौड़, देवास।
जिले में महादेव शिव के कई प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। उन्हीं में से एक शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर ग्राम निकलंक में निष्कलंकेश्वर महादेव का मंदिर है जो हमेशा आकर्षण का केन्द्र रहा हैं। निष्कलंकेश्वर महादेव मंदिर की प्राचीनता कई वर्षो पुरानी हैं। वर्ष भर भक्त महादेव के दर्शन करने मंदिर जाते हैं।
प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच विराजित हैं महादेव
निष्कलंकेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन करने के लिए भक्त कई जिलों सहित अन्य प्रदेशों से भी आते हैं। महादेव शिव की एक झलक पाकर भक्तों को आनंद की अनुभूति होती हैं। जिले में शहरी वातावरण से दूर प्रकृति की गोद में विराजमान महादेव की अति प्राचीन कहानियां आज भी दूर दूर तक प्रसिद्ध हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच चारों और हरियाली के मध्य महादेव के दर्शन कर भक्त अपना जीवन धन्य करते हैं।
पंचमुखी रूप में विराजे महादेव
निष्कलंकेश्वर मंदिर में महादेव शिव पंचमुखी प्रतिमा के रूप में विराजीत हैं। मंदिर के पूजारी विरेन्द्र पुरी जी महाराज बताते है कि भगवान शिव की यह प्रतिमा पारिजात पदार्थ से बनाई गई हैं। इसे शिला या पत्थर के रूप में नहीं माना गया हैं। पारिजात पदार्थ में बनाने का कारण चार युगों तक यह स्थापित रहें। क्योंकि पत्थर दो युग के आगे तक नहीं रह पाता हैं। इसीलिए इसे पारिजात पदार्थ द्वारा निर्मित किया गया था। महाभारत अर्जुन द्वारा मनुष्य जाति के कल्याण के लिये शिवलिंग की स्थापना की गई थी जिसमें ब्रम्हा,विष्णु,महेश व सूर्य विराजमान हैं। पंचमुखी में ऊपर का आकर लिंग आकार का हैं शेष चार मुख आकृति समान हैं। पुजारी जी बताते है कि यह नेपाल के पशुपतिनाथ महादेव से भी प्राचीन है। यह भारत के पहले पूर्व भारत की वर्चस्व की दास्तां बयां करती हैं। जब चारों दिशा भारत के आधीन हुआ करती थी। आज भी मंदिर राजत्व जैसे ही चलता हैं। यहां सेवादल हैं नाथ सम्प्रदाय के लोग हैं जो मंदिर के कार्य में लगे रहते है।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं
पुजारी जी बताते है कि कई सौ साल पहले राजा नीलकमल जिनका राज्य नीलमणी राज्य नाम से चलता था ऐसा दंत कथाओं में बताया गया है। जब राजा इस क्षेत्र में शिकार के लिये आये तो यहां से गुजरते समय उन्होंने पानी पीने की इच्छा जाहिर की और सैनिकों को पानी लाने का आदेश दिया गया। राजा के हाथ में सफेद कोड़ थी। सैनिकों द्वारा कुण्ड में से पानी लाकर राजा को दिया गया उस पानी के पीते ही राजा की कोड दूर हो गई। तभी राजा ने कहा यह स्थान चमत्कारी हैं और सैनिकों को आदेश दिया कि आसपास के क्षेत्र में खोजबीन करो तभी बड़े आकार का जमीन से उभरा हुआ एक हिस्सा दिखाई दिया जब उस पर से मिट्टी हटाई गई तो शिलाएं प्राप्त हुई। उन्हीं के बीच मंदिर सुरक्षित था। पश्चात मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया और राजा द्वारा मंदिर का नामकरण करते हुए इसे निष्कलंकेश्वर नाम दिया गया।
पुराणों में है वर्णन
पुजारी बताते है कि काफी शोध के बाद हमें पता चला कि स्कन्ध पुराण के अंदर अवंतिका खण्ड में इसका उल्लेख सौभाग्य तीर्थ के नाम से मिला हैं। यह महाभारत के पूर्व अर्जुन जब दिव्य अस्त्र सीखने के लिये इन्द्रलोक गए थे तब इन्द्रलोक से वरदान के रूप में इस शिवलिंग को व साथ ही उज्जैन के बावनकुण्ड के सूर्य मंदिर को देवलोक से लाया गया था। ऐसा पुराणों में वर्णन किया गया हैं। पश्चात अर्जुन द्वारा अपने हाथों से मंदिरों की स्थापना की गई थी। प्रतिमाओं का पहले नाम दिव्य देव एवं भास्कर देव था। यह मंदिर भारत का प्रतिबिम्ब हैं। मंदिर के मध्य से प्राचीन भारत के इतिहास का वर्णन किया गया हैं।
कथाएं व कहानियां जो प्रचलित हैं
निष्कलंकेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी एक और कहानी आज आमजन के बीच हैं बताया जाता है कि पहले यह मंदिर छोटे और सामान्य रूप में था उस समय मंदिर में आमजन दर्शन नहीं कर पाते थे दर्शन पर प्रतिबन्ध था । बाद में किसी नेपाली राजा ने मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार कराया और आमजन इसमें प्रवेश करने लगे। मंदिर का जीर्णोद्धार इन्हीं राजा ने करवाया था। इसका कोई उल्लेख तो नहीं है लेकिन ये कहानीयां आज आमजन के जेहन में है ऐसा बताया जाता है कि गाँव के आसमान में मंदिर को उड़ता देख एक महात्मा द्वारा अपनी शक्तियों से इसे जमीन पर उतारा गया था और इनकी मनुष्य जाति के कल्याण के लिये स्थापना की गई । इसका भी कोई प्रमाण नहीं है मंदिर से जुड़ी कथायें और कहानियां पुजारी व आमजन द्वारा बताई गई हैं।
लगता है परम्परागत मेला
हर वर्ष मंदिर के समीप महाशिवरात्री पर परम्परागत मेला लगाया जाता है जो लगातार अगले पांच दिनों तक चलता है। अन्य मेलों की तरह ही यहां पर लोगों के जीवन उपयोगी सामान मिलते है साथ ही महिलाओं के श्रृंगार से जुड़ी वस्तुएं व गृहस्थी संबंधित सजावट का सामान मेले में मिलता हैं। बच्चों और बड़ों के मनोरंजन के लिये झूले भी लगाये जाते हैं जिसका आनंद भक्तों के साथ साथ आसपास के ग्रामीण भी उठाते हैं।
महाशिवरात्रि पर लगती है भक्तों की भीड़
वर्ष भर भक्त महादेव के दर्शन को जाते है लेकिन महाशिवरात्रि पर आस्था एवं भक्ति का सैलाब देखने को मिलता है। कई दूरदराज से लोग यहां आते हैं, कुण्ड में स्नान करते हैं और महादेव के दर्शन करते है। सावन माह में महादेव मंदिर पर भक्त अधिक संख्या में दिखाई देते हैं।
राजवंशों ने शीश नवाया
पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर देवास रियासत में आता है। दिवंगत महाराज तुकोजीराव पवार का मंदिर से विशेष लगाव रहा है। वे महादेव के दर्शन करने हमेशा आया करते थे। साथ ही उनके पहले रियासत दर रियासत राजवंश के लोग यहां दर्शन करने आते रहे हैं। देवास ही नहीं बल्कि अन्य जगह के राजा व उनके पारिवारिक सदस्य महादेव के दर्शन करने आते हैं।
प्राचीन संस्कृति को संजोये रखने का प्रयास
पूजारी जी बताते है कि हमने यहां प्राचीन संस्कृति को संजोये रखने के लिये कई प्रयास किये हैं और सफल भी हुए हैं। लेकिन कुछ ऐसे कार्य है जो हम नहीं कर सकते जिसके लिये हमने प्रशासन को समय समय पर अवगत कराया है साथ ही बताते है कि महादेव की यह धरोहर प्राचीनता की कहानी बताती है और भक्त इनके दर्शन कर अपने दुखों को दूर करते हैं।
सिद्ध स्थान है बाबा भंवरनाथ मंदिर
शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भौंरासा प्राचीन मंदिर बाबा भंवरनाथजी पर ऐतिहासिक मेला लगाया जाएगा । यह एक प्राचीन एवं अपने अंदर कई पौराणिक कथाएं लिए हुए है। कहा जाता है कि राजानल एवं रानी दमयंती ने वनवास के समय एक साल का अज्ञात वास यहीं पर काटा था। भगवान मनकानेश्वर के भक्त श्री भंवरनाथ जी महाराज ने यहां पर जीवित समाधि ली थी , तब से यह स्थान और चमत्कारी एवं सिद्ध हो गया है। यहां पर भगवान भवरनाथ से जो मांगते हैं वह उसे मिल जाता है यहां का मेला बहुत ही प्राचीन है नगर के बुजुर्गों ने बताया कि यह मेला तकरीबन 155 साल लगातार लग रहा है । इस मेले की सम्पूर्ण व्यवस्था नगर पंचायत द्वारा की जाती है इसमें पशुओं की खरीदी बिक्री से साथ अन्य दुकानें भी लगाई जाती है तथा रात्रि को विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम, कवि सम्मेलन एवं अन्य मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद कार्यक्रमों आयोजन किया जाता है। क्षेत्र के निवासियों को यहां शिव पिंड पर औरगंजेब द्वारा किया गया हमला आज भी सालता है यहां पौराणिक शिवलिंग पर औरंगजेब ने गंडासे से प्रहार किया था, तो शिवलिंग में से रक्त की धारा बह निकली थी। यह देख औरंगजेब यहां से भागना पड़ा था शिवलिंग पर गंडासे का निशान देखने के बाद दर्शनार्थियों के में क्रोध उफनता है जिससे मनकामनेश्वर प्रति और श्रद्धा बढ़ती है। शिवलिंग पर औरगंजेब के गंडासे का निशान पहले काफी गहरा था, जो अब घट रहा है।
चमत्कारिक है देवास महाकालेश्वर मंदिर
शहर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर है। इस मंदिर से हजारों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इसे उज्जैन के बाबा महाकाल के रूप में ही देखा जाता है। आसपास रहने वाले और यहां नियम से दर्शन करने आने वाले लोगों का कहना है कि यहां का शिवलिंग न सिर्फ स्वयंभू है, बल्कि हर साल इसकी ऊंचाई लगातार बढ़ रही है, जो अपने आप में एक चमत्कार है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। मुख्य मार्ग पर होने के चलते यहां भक्तों को पहुंचने में ज्यादा दुविधाओं का सामना नहीं करना पड़ता है। मंदिर से जुड़ी कहानियों के अनुसार जब भक्त उज्जैन महाकालेश्वर के दर्शन करने नहीं पहुंच पाए, तो स्वयं महाकाल भक्त के पास पहुंचे और विराजित हुए थे। इसी के चलते इन्हें महाकालेश्वर का ही रूप कहा जाता है।
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