जीत की खुशी मनाने की बजाए आत्म मंथन करें भाजपा

देवास-विगत दिन मध्यप्रदेश में उपचुनाव सम्पन्न हुए।भाजपा ने जहाँ तीन सीट पर जीत दर्ज करवाई,वही कांग्रेस एक सीट पर  ही जीत दर्ज करा पाई है।भाजपा पार्टी जीत का जश्न मना रही है लेकिन दबे स्वर में विरोध की लहर को साफ देखा जा सकता है।पिछली जीतो के मुकाबले यह जीत काफी फीकी है और ऐसे परिणाम ने हाईकमान की नींद उड़ा दी है। राजनैतिक विशेषज्ञ बताते है कि जीत का जश्न बनता है लेकिन ऐसे परिणामो की उम्मीद शायद पार्टी ने सपने में भी नही सोची होगी।

जिले की बागली सीट का आंकलन

खंडवा लोकसभा उपचुनाव में बागली विधानसभा सीट देवास जिले के अंतर्गत आती है।लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व जिस बागली विधानसभा क्षेत्र से सांसद पद के भाजपा प्रत्याशी स्व. नंदकुमारसिंह चौहान ने करीब 43177 मतों से जीत हासिल की थी। वहीं जीत उपचुनाव में घटकर 11 हजार 208 मतों पर आ गई है। जीत का अंतर कम होने के कई कारण बताए जा रहे है, जिसमें पहला कारण बागली के भाजपा विधायक श्री कन्नौजे के प्रति जनता की नाराजगी प्रमुख है।पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता बताते है कि हमारा लगातार उपहास किया जाना, सम्मान ना मिलना भी इस परिणाम को दर्शा रहा है।प्रदेश सरकार द्वारा सिर्फ बागली विधानसभा में करोड़ों रुपये फूंकने एवं सरकारी मशीनरी का जीभर के उपयोग  करने के बावजूद भी मात्र 11 हजार मतों से ही बढ़त हासिल हुई है। 

बड़बोले नेताओ ने चुप्पी साधी

भाजपा के कुछ बड़बोले नेताओ 50 हजार से अधिक मतों से जीतने का दावा कर रहे थे,उनकी हवाईया उड़ चुकी है । कुछ नेता तो यह भी दावा कर रहे थे कि खंडवा लोकसभा की 8 विधानसभा में से बागली विधानसभा से ही भाजपा प्रत्याशी ज्ञानेश्वर पाटिल अधिक मतों से जीतेंगे, किंतु यह दावा भी धराशायी हो गया। क्षेत्र में घूम रहे भाजपा कार्यकर्ताओं की माने तो इस बार अधिकांश गांव में क्षेत्रीय विधायक पहाड़सिंह कन्नौजे के खिलाफ नाराजगी देखने को मिली थी।कुछ वीडियो भी वायरल हुए थे लेकिन उन्हें  वायरल नही होने में पार्टी ने एड़ी चोटी के जोर लगा दिए थे। कई ग्रामीणों ने तो यहां तक कहा कि विधायक को हमारे गांव में मत लाना, अन्यथा हम भाजपा का साथ नहीं देंगे। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण सामने आए है।

बढ़ती महंगाई से भी पड़ा मतदान पर असर 

बढ़ती महंगाई भी भाजपा के खिलाफ भारी पड़ी है। यह बात ओर है कि भाजपा ने किसी तरह जीत दर्ज कराई है, किंतु अब कई क्षेत्रों में भाजपा की जमीन कमजोर होती नजर आ रही है। भाजपा प्रत्याशी ज्ञानेश्वर पाटिल को लाखों मतों से जिताने के लिए भाजपा ने एढ़ी-चोंटी का जोर लगाया था और भाजपा के बड़े नेता 2 लाख से अधिक मतों से जीतने का दावा भी कर रहे थे। इसके लिए स्वयं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान बागली विधानसभा में उदयनगर, सतवास व कांटाफोड़ में तीन बार रोड शो व जनसभा को संबोधित कर गए। इनके अलावा केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, मंत्री उषा ठाकुर, पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय, पूर्व मंत्री दीपक जोशी, विधायक आशीष शर्मा, जिलाध्यक्ष राजीव खण्डेलवाल सहित कई नेता लगातार क्षेत्र में घूमते रहे, किंतु उनकी उपस्थिति का भी मतदाताओं पर असर नहीं देखा गया। 

मैनेजमेंट पास या फेल...?

बताया जा रहा है भाजपा कार्यालय पर बैठकर बनाई गई रणनीति को सिरे ने नकार दिया गया है। कांग्रेस वैसे भी अपनी समस्याओ से जूझ रही है। भाजपा का प्रबंधन फेल हुआ,सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस का तो दूर-दूर तक मैनेजमेंट नहीं दिखाई दिया, किंतु बूथ मैनेजमेंट के लिए मानी जाने वाली भाजपा का भी प्रबंधन इस बार बागली में फेल होता दिखाई दिया। प्रदेश आलाकमान ने तो बूथ लेवल से लेकर तहसील तक खर्च करने के लिए करोड़ों रुपये भेजे, किंतु बूथ स्तर तक राशि नहीं पहुंची।ये आरोप भी लगते गए तो फिर यह राशि कहा गयी अब ये भी प्रश्न उठ रहे है। लिहाजा कार्यकर्ताओं को संसाधनों के अभाव में काम करना पड़ा। कुछ युवा कार्यकर्ता तो पूरे चुनाव दिखे ही नही जो पार्टी के लिए अंतिम छोर में बैठे मतदाताओ को मतदान केंद्रों तक लाने के लिए महनत करते थे।

राउंड बढ़ते गए और जीत का अंतर कम होता गया

मतदान के बाद मतगणना 26 राउंड में सम्पन्न हुई, गणना के बाद परिणाम सबके सामने आए।जैसे जैसे राउंड बढ़ते गए भाजपा के जीत का अंतर कम होता गया और सारे दावों की हवा निकलती गयी। पूरे मतगणना परिसर में नेताओ की अनुपस्थित एक अलग की सन्देश दे रही थी के इस बार मतदाता के मन मे केवल आक्रोश पनप रहा था।कार्यालय में बैठकर पल पल की जानकारी  लेते रहे पार्टी से जुड़े अधिकांश नेता..

सीएम का जादू भी ज्यादा नहीं चला

बागली विधानसभा के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र सतवास, कांटा फोड़ ,उदयनगर में सीएम खुद पहुँचे थे लेकिन उसके बाद भी इन क्षेत्रों से ज्यादा लीड नहीं मिल पाई। यह क्षेत्र जिले के घाट नीचे क्षेत्र में आते हैं और यही क्षेत्र पार्टी के कम मतदान के क्षेत्र साबित हुए है इसी से लीड का अंतर कम हुए और पार्टी का कोई भी नेता अपना प्रभाव नही दिखा पाया ।

कम मतदान,क्या था कारण..?

पिछले चुनाव में लगभग 85 प्रतिशत मतदान और इस बार लगभग 67 मतदान कई नई कहानियों को जन्म दे चुका है।भाजपा से जुड़े नेता कम मतदान को लेकर कई तर्क देते दिख रहे है।लेकिन मतदान का इतना कम होना पार्टी के चहरे पर चिंता की लकीर खिंच गया है।इतने प्रयास,इतना संसाधन होने के बाद भी मतदाता मतदान केंद्रों पर नही पहुँचे तो इसके लिए मौसम या घरेलू कार्य जिम्मेदार नही है या तो स्थानीय स्तर के मतदाता पार्टी से खफा है या फिर मतदाता अब पार्टी के रवैये से ऊब चुके है कुल मिलाकर ये संकेत आने वाले पंचायत चुनाव या निगम चुनाव में पार्टी के मतों पर काफी प्रभाव डाल सकते है।

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