महालक्ष्मी उत्सव: मराठी परिवारों में मनाया गया उल्लासपूर्ण पर्व
महालक्ष्मी उत्सव: मराठी परिवारों में मनाया गया उल्लासपूर्ण पर्व
देवास। भाद्रपद माह के दौरान महालक्ष्मी के स्वागत की परंपरा के तहत, दो बहनें अपने बच्चों के साथ मायके पहुंचती हैं और ढाई दिन तक वहां रहती हैं। इस विशेष अवसर पर मराठी परिवारों में महालक्ष्मी उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। मंगलवार को अनुराधा नक्षत्र के दिन महालक्ष्मी की स्थापना के साथ इस पर्व की शुरुआत हुई। इस उत्सव के दौरान परिवारों में पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, और महालक्ष्मी के स्वागत के लिए विविध प्रकार के पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है।
दर्शन के बाद विदाई-
महालक्ष्मी उत्सव के अगले दिन बुधवार को महालक्ष्मी को विभिन्न 56 व्यजनों के साथ विभिन्न पकवानों का भोग लगाया जाएगा। इस दौरान ज्वार को दरदरा पीसकर और छाछ से तैयार विशेष महाप्रसाद आंबिल का भोग लगाया जाएगा। इसे विशेष प्रसाद माना जाता है। इसी प्रकार पूरणपोली सहित विभिन्न प्रकार की सब्जियों और पकवानों का भी भोग महालक्ष्मी को लगाया जाता है, और प्रसाद वितरित किया जाता है। अगले दिन मंगलवार को दिन भर दर्शन का सिलसिला चलेगा, इसके बाद देर शाम को महालक्ष्मी की विदाई होगी।
एक ही प्रतिमा की कई पीढिय़ों तक होती है पूजा-
महालक्ष्मी की एक ही प्रतिमा की कई पीढिय़ों तक की जाती है। ढाई दिन उत्सव के बाद प्रतिमाओं को सुरक्षित संदुक में रख दिया जाता है, और अगले साल फिर उसी प्रतिमा की पूजा अर्चना की जाती है। इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही प्रतिमा की पूजा का सिलसिला चलता है। महालक्ष्मी की स्थापना परिवार में होती है, सार्वजनिक रूप से स्थापना, उत्सव आदि नहीं मनाया जाता है, इसलिए पारिवारिक लोग ही इसमें शामिल होते हैं।
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