गांव की 60 साल पुरानी समस्या,अब तक नहीं बनी सड़क
देवास।जिले के सुमराखेड़ी नाका गांव में जो 60 साल पहले कंजर समुदाय द्वारा बसाया गया था,अब तक सड़क और मुक्तिधाम जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव की आबादी लगभग 400 है, लेकिन शासन-प्रशासन की उपेक्षा के कारण ग्रामीणों को बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। गांव में एक जर्जर स्कूल भवन और सड़क की कमी के चलते बारिश के मौसम में कीचड़ और अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, गांव के बच्चे शिक्षा की उम्मीद लगाए हुए हैं और स्थानीय लोग सरकार से सुधार की उम्मीद कर रहे हैं।
कई बार इन लोगों ने क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक नुमांइदों के समक्ष गुहार लगाई है, किंतु अभी तक परिणाम शून्य है। हम बात कर रहे है भोपाल रोड पर स्थित सुमराखेड़ी नाके की, जिसे कुछ लोग सिक्खेड़ी नाका भी बोलते है। यहां पर रहने वाले शत-प्रतिशत लोग कंजर समुदाय के है। ग्राम पंचायत भलाईखुर्द के अंतर्गत आने वाले सुमराखेड़ी नाका (कंजर डेरा) में 400 लोग निवास करते है, जिसमें से 275 मतदाता है। गांव में रहने वाले रवि झाला व अरुणा झाला ने बताया कि करीब 60 वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने इस गांव को बसाया था। तब यहां पर गिने-चुने टप्परनुमा मकान बनाए थे, जिसमें बमुश्किल 20 से 30 लोग रहते थे। धीरे-धीरे संख्या बढ़ती गई और अब 400 का आंकड़ा पार कर गई है। इस गांव में अब टप्पर दिखाई नहीं देते है, बल्कि आलीशान मकान बन चुके है, किंतु दुर्भाग्य है कि यहां पर अभी तक मुक्तिधाम नहीं बन सका है और ना ही गांव में सड़क बनी है। लिहाजा बारिश के मौसम में यहां के लोगों व स्कूली बच्चों को कीचड़ का सामना करना पड़ता है। कई बार तो बारिश के दौरान अंतिम संस्कार के भी लाले पड़ जाते है।
उन्नत प्राथमिक विद्यालय में तीन शिक्षक व 14 बच्चे
आम तौर पर माना जाता है कि कंजर समुदाय खेती या व्यापार करने के बजाय ट्रक कटिंग व चोरी की वारदात कर अपना जीवन यापन करते है, किंतु अब कंजर समुदाय के युवा भी इस परिपाटी को तोड़ते हुए खेती-किसानी व व्यापार करने लगे है। वहीं भविष्य में अपने बच्चों को पढ़ा कर परंपरागत व्यवसाय से दूर होना जाता है। इसीलिए इस गांव के कुछ संपन्न लोग अपने बच्चों को पढऩे के लिए देवास भेज देते है, किंतु गरीब तबके के लोग गांव में बसे शासकीय उन्नत प्राथमिक विद्यालय में अपने बच्चे भेजते है। इस स्कूल की स्थिति काफी दयनीय है। इस स्कूल में न तो बैठने के लिए फर्नीचर है और ना ही साफ-सफाई की व्यवस्था है। लिहाजा तीन शिक्षकों के भरोसे चलने वाले इस स्कूल में लाख प्रयास के बाद महज 14 बच्चे ही प्रवेश ले सके है। स्कूल की स्थिति देखकर लगता है कि इन बच्चों का भी भविष्य यहां पर अंधकारमय है। हालांकि जिला शिक्षा अधिकारी हरिसिंह भारतीय का कहना है कि मैं जल्द ही स्कूल का निरीक्षण करुंगा और यहां की व्यवस्था सुधार दी जाएगी। जबकि रोटरी क्लब के नवागत अध्यक्ष डॉ. रूपसिंह नागर ने इस स्कूल में फर्नीचर प्रदान करने का आश्वासन दिया है।
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