मध्यप्रदेश विधानसभा में दो अहम विधेयकों को मंजूरी: नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव अब होगा सीधे जनता से
मध्यप्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के चौथे दिन दो महत्वपूर्ण विधेयकों को बहुमत से मंजूरी मिल गई। इन विधेयकों के तहत राज्य के नगर निगम और नगर पालिका के अध्यक्षों के चुनाव और उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया में अहम बदलाव किए गए हैं। यह विधेयक नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय द्वारा पेश किए गए थे, और इनसे प्रदेश में स्थानीय निकायों के प्रशासनिक ढांचे में बड़ा परिवर्तन आने की संभावना है।
नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने पेश किए विधेयक
मध्यप्रदेश नगर पालिका निगम संशोधन विधेयक 2024 और मध्यप्रदेश नगर पालिका द्वितीय संशोधन विधेयक 2024 इन दोनों विधेयकों के माध्यम से नगर निगम और नगर पालिका के महापौर और अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया को कड़ा किया गया है। इसके अलावा, नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं।
नगर निगम अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर रोक
नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय द्वारा प्रस्तुत मध्यप्रदेश नगर पालिका निगम संशोधन विधेयक 2024 में यह प्रावधान किया गया है कि अब नगर निगम अध्यक्ष के खिलाफ तीन साल तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा। इस बदलाव से पहले, नगर निगम अध्यक्ष के खिलाफ पार्षद किसी भी समय अविश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार रखते थे, बशर्ते उन्हें दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हो।
अब, इस विधेयक के बाद अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए पार्षदों को तीन चौथाई बहुमत की आवश्यकता होगी, और यह प्रक्रिया केवल अध्यक्ष के कार्यकाल के तीन साल बाद ही शुरू हो सकेगी। इसका उद्देश्य नगर निगम अध्यक्षों को अपनी कार्यशैली पर अधिक ध्यान केंद्रित करने और स्थिरता सुनिश्चित करने का अवसर देना है।
नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव होगा प्रत्यक्ष प्रणाली से
दूसरे विधेयक मध्यप्रदेश नगर पालिका द्वितीय संशोधन विधेयक 2024 के तहत प्रदेश के नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव अब प्रत्यक्ष प्रणाली से किया जाएगा। इसका अर्थ यह है कि अब नगर पालिका अध्यक्ष का चयन सीधे जनता द्वारा किया जाएगा, जिससे अध्यक्ष की जिम्मेदारी और जवाबदेही सीधे जनता के प्रति बढ़ जाएगी। इस परिवर्तन का उद्देश्य स्थानीय चुनावों में पारदर्शिता और लोगों की भागीदारी बढ़ाना है।
विपक्ष ने उठाए सवाल:
विपक्ष ने इन विधेयकों के खिलाफ अपनी आपत्तियां दर्ज की हैं। खासकर, कांग्रेस के उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने इस बदलाव को पार्षदों के अधिकारों का हनन बताते हुए इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह कदम जनता से चुने गए प्रतिनिधियों की स्वतंत्रता को सीमित करेगा और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला साबित हो सकता है। उनका कहना था कि इस तरह की व्यवस्थाओं से पार्षदों को अपनी जिम्मेदारियों के बारे में सवाल उठाने का अधिकार कम हो जाएगा, जिससे अधिकारियों और अध्यक्षों को मनमानी करने का मौका मिल सकता है।
विधेयकों के प्रभाव: क्या बदलाव आएंगे?
इन विधेयकों के पारित होने के बाद नगरीय निकायों में प्रशासनिक संरचना और सत्ता के संतुलन में महत्वपूर्ण बदलाव आएंगे।नगर निगम और नगर पालिका अध्यक्षों की स्थिति मजबूत होगी, क्योंकि उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना अब और कठिन हो जाएगा।पार्षदों के अधिकार सीमित हो जाएंगे, जिससे अध्यक्षों पर लगाम लगाना मुश्किल हो सकता है।जनता द्वारा चुनाव किए जाने के कारण, अध्यक्षों की जवाबदेही सीधे जनता के प्रति बढ़ेगी, जो उनकी कार्यशैली और प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है।
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