पानीपत युद्ध में मराठाओं के शौर्य की गौरव गाथा यात्रा पहुँची देवास,पराक्रम व वीरता के सुनाए किस्से
हम जातियों, प्रांंतों और भाषा को लेकर आज भी बंटे हुए हैं-डॉ.महिंद
देवास।माँ चामुंडा की नगरी में आज एक ऐसी यात्रा का आगमन हुआ जिसका इतिहास कई वर्षों पुराना है।पानीपत में 1761 में मराठा और आब्दाली के बीच हुए महायुद्ध के वीरों की गौरव गाथा को लोगों तक पहुंचाने के लिए शुरू की गई यात्रा शनिवार को देवास पहुंचीमराठाओं के शौर्य की गाथा को दिल मे लिए यह यात्रा पुणे से पानीपत होकर देवास के रास्ते उज्जैन जा रही थी। यात्रा का महाराष्ट्र समाज धर्मशाला में विभिन्न समाजों के सदस्यों द्वारा पुष्प वर्षा व माला पहनाकर कर स्वागत किया गया। लगभग 80 लोगों की यह यात्रा 6 जनवरी को पुणे से शुरू होकर 1300 किलो मीटर की दूरी तय कर 14 जनवरी को पानीपत पहुंची थी।
यात्रा संयोजक डॉ.संदीप महिंद और उनके साथियों का जोरदार स्वागत किया गया। महाराष्ट्र समाज के सभा गृह में शहर के कई गणमान्य नागरिक की मौजूदगी में इस यात्रा के उद्देश्य का वर्णन करते हुए संदीप जी ने पानीपत युद्ध में मराठाओं के शौर्य की गाथा सुनाई। उन्होंने बताया कि इस यात्रा का उद्देश्य 1761 में मराठा और अब्दाली के बीच हुए पानीपत युद्ध के वीरों की गौरव गाथा को लोगों तक पहुंचाना है।उन्होंने बताया कि इस दल में 6 बहनों और 2 बालकों सहित 83 लोग दो पहिया वाहनों से प्रतिदिन 300 से 350 किमी की यात्रा कर लोगों को देश के गौरवशाली इतिहास के इस प्रसंग के बारे में जानकारी दी जा रही है।उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में पानीपत के तीसरे युद्ध का बड़ा महत्व है। इस युद्ध को 261 वर्ष पूर्ण हो गए है। उन्होंने कहा कि इतिहास इस युद्ध में मराठाओं की हार बताता है, लेकिन यह सवा लाख मराठाओं के शौर्य की गाथा थी, जिन्होंने इस युद्ध में अपना पराक्रम दिखाया। इसके बाद किसी आक्रांता ने उत्तर पश्चिम दिशा में आने की हिम्मत नहीं दिखाई।
पानीपत युद्ध में देश के अन्य शक्तिओं ने एकजुट होकर साथ नहीं दिया। दुर्भाग्य से आज भी हम एक नहीं हैं। आज भी हम जातियों, प्रांंतों और भाषा को लेकर बंटे हुए हैं। अगर हम अपने अंदर छिपे अलगाव को समाप्त नहीं करेंगे तो आगे भी पानीपत युद्ध जैसी परिस्थिति निर्मित होती रहेगी। अहमद शाह अब्दाली की सेना को विजय जरूर मिली थी किन्तु मराठों के पराक्रम के कारण वह दिल्ली का बादशाह नहीं बन सका। 28 जनवरी को यात्रा का समापन होगा।कार्यक्रम का संचालन इतिहासकार दिलीपसिंह जाधव ने किया।
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